जब किसी इंसान पर शनिदेव की महादशा चल रही होती है तो उसे पीपल की पूजा का उपाय जरूर बताया जाता है।
कई बार मन में यह सवाल उठता है कि ब्रम्हांड के सबसे शक्तिशाली और क्रूर ग्रह शनि का क्रोध मात्र पीपल वृक्ष की पूजा करने से कैसे शान्त हो जाता है।
आज हम आपको बताने जा रहे हैं शनि और पीपल से सम्बंधित वह पौराणिक कथा जिसके बारे में आपने शायद ही पहले कभी सुना हो।
शनि और पीपल से सम्बंधित पौराणिक कथा
पुराणों की माने तो एक बार त्रेता युग मे अकाल पड़ गया था। उसी युग मे एक कौशिक मुनि अपने बच्चो के साथ रहते थे। बच्चो का पेट न भरने के कारण मुनि अपने बच्चो को लेकर दूसरे राज्य मे रोज़ी रोटी के लिए जा रहे थे।
रास्ते मे बच्चो का पेट न भरने के कारण मुनि ने एक बच्चे को रास्ते मे ही छोड़ दिया था। बच्चा रोते रोते रात को एक पीपल के पेड़ के नीचे सो गया था तथा पीपल के पेड़ के नीचे रहने लगा था।
तथा पीपल के पेड़ के फल खा कर बड़ा होने लगा था। तथा कठिन तपस्या करने लगा था।
एक दिन ऋषि नारद वहाँ से जा रहे थे। नारद जी को उस बच्चे पर दया आ गयी तथा नारद जी ने उस बच्चे को पूरी शिक्षा दी थी तथा विष्णु भगवान की पूजा का विधान बता दिया था।
अब बालक भगवान विष्णु की तपस्या करने लगा था। एक दिन भगवान विष्णु ने आकर बालक को दर्शन दिये तथा विष्णु भगवान ने कहा कि हे बालक मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूँ। आप कोई वरदान मांग लो।
बालक ने विष्णु भगवान से सिर्फ भक्ति और योग मांग लिया था। अब बालक उस वरदान को पाकर पीपल के पेड़ के नीचे ही बहुत बड़ा तपस्वी और योगी हो गया था।
एक दिन बालक ने नारद जी से पूछा कि हे प्रभु हमारे परिवार की यह हालत क्यो हुई है। मेरे पिता ने मुझे भूख के कारण छोड़ दिया था और आजकल वो कहा है।
नारद जी ने कहा बेटा आपका यह हाल शानिमहाराज ने किया है। देखो आकाश मे यह शनैश्चर दिखाई दे रहा है । बालक ने शनैश्चर को उग्र दृष्टि से देखा और क्रोध से उस शनैश्चर को नीचे गिरा दिया।
उसके कारण शनैश्चर का पैर टूट गया और शनि असहाय हो गया था। शनि का यह हाल देखकर नारद जी बहुत प्रसन्न हुए।
नारद जी ने सभी देवताओ को शनि का यह हाल दिखाया था। शनि का यह हाल देखकर ब्रह्मा जी भी वहाँ आ गए थे और बालक से कहा कि मैं ब्रह्मा हूँ आपने बहुत कठिन तप किया है।
आपके परिवार की यह दुर्दशा शनि ने ही की है । आपने शनि को जीत लिया है। आपने पीपल के फल खाकर जीवंन जीया है।
इसलिए आज से आपका नाम पिपलाद ऋषि के नाम जाना जाएगा और आज से जो आपको याद करेगा उसके सात जन्म के पाप नष्ट हो जाएँगे।
तथा पीपल की पूजा करने से आज के बाद शनि कभी कष्ट नहीं देगा। ब्रह्मा जी ने पिपलाद बालक को कहा कि अब आप इस शनि को आकाश मे स्थापित कर दो। बालक ने शनि को ब्रह्माण्ड मे स्थापित कर दिया।
तथा पिपलाद ऋषि ने शनि से यह वायदा लिया कि जो पीपल के वृक्ष की पूजा करेगा उसको आप कभी कष्ट नहीं दोगे। शनैश्चर ने ब्रह्मा जी के सामने यह वायदा ऋषि पिपलाद को दिया था।
उस दिन से यह परंपरा है जो ऋषि पिपलाद को याद करके शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा करता है उसको शनि की साढ़े साती , शनि की ढैया और शनि महादशा कष्ट कारी नहीं होती है।
शनि की पूजा कैसे और कब तक करें?
शनि की पूजा और व्रत एक वर्ष तक लगातार करनी चाहिए। शनि कों तिल और सरसो का तेल बहुत पसंद है इसलिए तेल का दान भी शनिवार को करना चाहिए।
पूजा करने से तो दुष्ट मनुष्य भी प्रसन्न हो जाता है तो फिर शनि क्यो नहीं प्रसन्न होगा? इसलिए शनि की पूजा का विधान तो भगवान ब्रह्मा ने दिया है।
सारांश
अगर आपकी शनिदेव की महादशा चल रही होती है तो आपको शनि की पूजा और व्रत एक वर्ष तक लगातार करनी चाहिए।
शनि कों तिल और सरसो का तेल बहुत पसंद है इसलिए तेल का दान भी शनिवार को करना चाहिए। ऐसा करने से शनिदेव प्रसन्न होंगे और आपकी शनिदेव की महादशा जरूर समाप्त होगी।
FAQs :
शनिदेव की पूजा कैसे करें?
शनिदेव कों तिल और सरसो का तेल बहुत पसंद है इसलिए पूजन मे तेल का दान भी शनिवार को करना चाहिए।
शनिदेव कब तक करें?
शनि की पूजा और व्रत एक वर्ष तक लगातार करनी चाहिए।