प्रदोष व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन पूरी निष्ठा से भगवान शिव की अराधना करने से जातक के सारे कष्ट दूर होते हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।पुराणों के अनुसार एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों के दान जितना होता है।
प्रदोष व्रत का महत्व –
▪️इस व्रत के महत्व को वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था। उन्होंने कहा था कि कलयुग में जब अधर्म का बोलबाला रहेगा, लोग धर्म के रास्ते को छोड़ अन्याय की राह पर जा रहे होंगे उस समय प्रदोष व्रत एक माध्यम बनेगा जिसके द्वारा वो शिव की अराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित कर सकेगा और अपने सारे कष्टों को दूर कर सकेगा।
▪️ सबसे पहले इस व्रत के महत्व के बारे में भगवान शिव ने माता सती को बताया था, उसके बाद सूत जी को इस व्रत के बारे में महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया, जिसके बाद सूत जी ने इस व्रत की महिमा के बारे में शौनकादि ऋषियों को बताया था।
▪️प्रदोष व्रत के दिन प्रातः काल स्नान करके भगवान शिव की विल्व पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें व भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।
प्रदोष व्रत के कुछ सामान्य नियम –
● प्रदोष व्रत करने के लिए सबसे पहले आप त्रयोदशी के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं।
● स्नान आदि करने के बाद आप साफ़ वस्त्र पहन लें।
● भगवान के समक्ष हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प ले। और व्रत की सफलता के लिए प्रार्थना करें।
● उसके बाद आप बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें।
● सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान कर लें और सफ़ेद रंग का वस्त्र धारण करें।
● भगवान की पूजा के लिए आप उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं।
● भगवान शिव के मंत्र “ऊँ नम: शिवाय” का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं, भगवान शिव की कथाओं का श्रवण करें।।
भौम प्रदोष व्रत –
प्रदोष व्रत यदि मंगलवार के दिन पड़े तो उसे ‘भौम प्रदोष व्रत’ कहते हैं। मंगलदेव ऋणहर्ता होने से कर्ज- निवारण के लिए यह व्रत विशेष फलदायी है। भौम प्रदोष व्रत के दिन संध्या के समय यदि भगवान शिव एवं सद्गुरुदेव का पूजन करें तो उनकी कृपा से जल्दी कर्ज से मुक्त हो जाते हैं। पूजा करते समय यह मंत्र भी बोल सकते-:
“मृत्युंजय महादेव त्राहि मां शरणागतम। जन्ममृत्युजराव्याधिपीडितं कर्मबन्धनै:।।”
ध्यान रहे – किसी भी दैवीय सहायता के लिए पुरुषार्थ अनिवार्य है।
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