अघोरी साधु और साधना!

दुनियाँ में सबसे सक्त जीव अघोरी का इतिहास वीर साधना विद्या हिंदू धर्म का एक संप्रदाय अघोर पंथ की उत्पत्ति के काल के बारे में वैसे तो अभी कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं परन्तु इन्हें कपालिक संप्रदाय के समकक्ष मानते हैं ये भारत के प्राचीनतम धर्म “शैव” शिव साधक से संबधित हैं अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रूप भी माना जाता है शिवजी के पांच रूपों में से एक रूप अघोरी रूप है 

जो घोर नहीं हो यानी बहुत सरल और सहज हो तथा जिसके मन में कोई भेदभाव नहीं हो-अघोरी हर चीज में समान भाव रखते हैं-वे सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खाते हैं जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जाता है अघोरी हमेशा से लोगों की जिज्ञासा का विषय रहे हैं अघोरियों का जीवन जितना कठिन है उतना ही ये रहस्यमयी भी है और अघोरियों की साधना विधि सबसे ज्यादा रहस्यमयी है उनकी अपनी शैली है अपना विधान है अपनी अलग विधियां हैं- 

अघोरी की दुनिया ही नहीं बल्कि उनकी हर बात निराली है-

वे जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे सब कुछ दे देते हैं अघोरियों की कई बातें ऐसी हैं जो सुनकर आप दांतों तले अंगुली दबा लेंगे-हम आपको अघोरियों की दुनिया की कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं जिनको पढ़कर आपको एहसास होगा कि वे कितनी कठिन साधना करते हैं साथ ही उन श्मशानों के बारे में भी आज आप जानेंगे जहां अघोरी मुख्य रूप से अपनी साधना करते हैं

अघोरी मूलत: तीन तरह की साधनाएं करते हैं- शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना- 

शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पैर है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है। शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना-जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ (जिस स्थान पर शवों का दाह संस्कार किया जाता है) की पूजा की जाती है तथा उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है

अघोरी शव साधना के लिए शव कहाँ से लाते है- 

हिन्दू धर्म में आज भी किसी 5 साल से कम उम्र के बच्चे, सांप काटने से मरे हुए लोगों, आत्महत्या किए लोगों का शव जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया या गंगा में प्रवाहित कर कर दिया जाता है-पानी में प्रवाहित ये शव डूबने के बाद हल्के होकर पानी में तैरने लगते हैं और अक्सर अघोरी तांत्रिक इन्हीं शवों को पानी से ढूंढ़कर निकालते और अपनी तंत्र सिद्धि के लिए प्रयोग करते हैं- बहुत कम लोग जानते हैं कि अघोरियों की साधना में इतना बल होता है कि वो मुर्दे से भी बात कर सकते हैं-ये बातें पढऩे-सुनने में भले ही अजीब लगे-लेकिन इन्हें पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता है उनकी साधना को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती है

ये हठी होते है- 

अघोरी अमूमन आम दुनिया अघोरियों के बारे में कई बातें प्रसिद्ध हैं जैसे कि वे बहुत ही हठी होते हैं अगर किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर नहीं छोड़ते है और अगर गुस्सा हो जाएं तो फिर किसी भी हद तक जा सकते हैं

अधिकतर अघोरियों की आंखें लाल होती हैं जैसे वो बहुत गुस्सा हो लेकिन उनका मन उतना ही शांत भी होता है-काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी गले में धातु की बनी नरमुंड की माला पहनते हैं अघोरी अक्सर श्मशानों में ही अपनी कुटिया बनाते हैं-जहां एक छोटी सी धूनी जलती रहती है जानवरों में वो सिर्फ कुत्ते पालना पसंद करते हैं उनके साथ उनके शिष्य रहते हैं जो उनकी सेवा करते हैं

अघोरी अपनी बात के बहुत पक्के होते हैं वे अगर किसी से कोई बात कह दें तो उसे पूरा करते हैं अघोरी गाय का मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजों को खाते हैं मानव मल से लेकर मुर्दे का मांस तक-अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है-इसलिए वे श्मशान में रहना ही ज्यादा पंसद करते हैं-श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है-चूँकि श्मशान में साधारण मानव जाता ही नहीं है इसीलिए साधना में विध्न पडऩे का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है

उनके मन से अच्छे बुरे का भाव निकल जाता है इसलिए वे प्यास लगने पर खुद का मूत्र भी पी लेते हैं- समाज से कटे हुए होते हैं-वे अपने आप में मस्त रहने वाले और अधिकांश समय दिन में सोने और रात को श्मशान में साधना करने वाले होते हैं वे आम लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते है ना ही ज्यादा बातें करते हैं-वे अधिकांश समय अपना सिद्ध मंत्र ही जाप करते रहते हैं। 

आज भी ऐसे अघोरी और तंत्र साधक हैं जो पराशक्तियों को अपने वश में कर सकते हैं-ये साधनाएं श्मशान में होती हैं और दुनिया में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है ये हैं- 

तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल) कामाख्या पीठ (असम) का श्मशान त्र्र्यम्बकेश्वर (नासिक) का श्मशान उज्जैन (मध्य प्रदेश) का श्मशान तारापीठ-

यह मंदिर पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले में एक छोटा शहर है। यहां तारा देवी का मंदिर है। इस मंदिर में मां काली का एक रूप तारा मां की प्रतिमा स्थापित है। रामपुर हाट से तारापीठ की दूरी लगभग 6 किलोमीटर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है। 

तारापीठ- मंदिर का प्रांगण श्मशान घाट के निकट स्थित है, इसे महाश्मशान घाट के नाम से जाना जाता है। इस महाश्मशान घाट में जलने वाली चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं है। यहां आने पर लोगों को किसी प्रकार का भय नहीं लगता है। मंदिर के चारों ओर द्वारका नदी बहती है। इस श्मशान में दूर-दूर से साधक साधनाएं करने आते हैं।

कामाख्या पीठ- असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या मंदिर है यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका तांत्रिक महत्व है-प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है- पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है-यह स्थान तांत्रिकों के लिए स्वर्ग के समान है यहां स्थित श्मशान में भारत के विभिन्न स्थानों से तांत्रिक तंत्र सिद्धि प्राप्त करने आते हैं

उज्जैन- मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में महाकालेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है यह स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी माना जाता है इस कारण तंत्र शास्त्र में भी शिव के इस शहर को बहुत जल्दी फल देने वाला माना गया है यहां के श्मशान में दूर – दूर से साधक तंत्र क्रिया करने आते हैं

नासिक-  महाराष्ट्र के नासिक जिले में त्र्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर है यहां के ब्रह्म गिरि पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है-मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है- ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं- ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये सात सौ सीढिय़ां बनी हुई हैं- इन सीढिय़ों पर चढऩे के बाद रामकुण्ड और लक्ष्मण कुण्ड मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं-भगवान शिव को तंत्र शास्त्र का देवता माना जाता है तंत्र और अघोरवाद के जन्मदाता भगवान शिव ही हैं-यहां स्थित श्मशान भी तंत्र क्रिया के लिए प्रसिद्ध है 

अघोरी साधना का नाम सुनकर लोगों के मन में या तो भय व्याप्त होता है या उनके मन में एक नार्किक मलीन साधना के बारे में मानसिक दृष्य चलने लगता है।

मनुष्य की समाज में प्रतिष्ठा उसे व्यवहार या संस्कार से नही अपितु उसके धन वैभव से ही होती है सभके जीवन में ईश्वर एक न एक बार समृद्ध होने का अवसर देता है लेकिन कई बार आदमी खुद गलती करता है यो कई बार अपने स्नेही जनों के कारण किसी मुसीबत में पड़ता है और भी बहुत सारी धन वैभव प्राप्त करने की साधनायें है, जो शास्त्रों में विधिवत रूप से वर्णित है लेकिन ये समय बहुत तीव्रता से चलता है समय कम होने के कारण अक्सर सभी शास्त्रीक साधनायें मर्यादित और विधिवत न होने के कारण फलित नही होती ।

बहुत सारी मुस्लिम साधनायें भी होती है उनमें बहुत सख़्त नियम और बहुत गहन मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है और कई बार उन साधनाओं को कई कई बार दोहराना पड़ता है जिससे बिना मार्गदर्शन और धैर्य के मनुष्य का अमूल्य समय नष्ट होता है और साधना कभी फलित नही होती। एक अघोरी साधना जिसका कोई भी साधक आज तक निराश नही हुआ हा कई बार आदमी के परिश्रम या भावना में साधना करने के बाद आपको आभा मण्डल असमान्य रूप से विकसित हो चुका होता है,अगर आप साधनाकाल पूरा होने तक प्रतीक्षा नही कर सकते तो ये वही बात होगी कि बिल्ली दही ना जमने दे,उतनी प्रतीक्षा तो करनी ही पड़ेगी ही पड़ेगी ।

एक मिनट में जिन्न दो मिनट में परी सिद्ध करने वाले के बारे में क्या बोला जाए। सुनकर ही हंसी आती है कि जो संभव नहीं है झूठ बोलने वाले किस तरह डींगें मारते हैं,लेकिन सच सामने आने में समय नही लगता ये बात बिल्कुल सही है ।

असल बात ये है कि अगर आप नए साधक हो तो पहली बार गलती करोगे ही करोगे । बस उसी चक्कर में बहुत सारे नए साधक उलझ जाते है और एक बार भ्रमित अवश्य होंगे और जब होश आएगा तब बहुत ज्यादा समय बर्बाद हो गया होगा।

अघोरी साधना एक बहुत ही आधिक प्रचंड शक्तिशाली उग्र तामसिक साधना है,अघोरी साधना इसको करने से कोई भी इच्छा पूरी ना हो ये हो नही सकता । अघोरी साधनाये कभी भी व्यर्थ नही जाती है परंतु बिना गुरु के मार्गदर्शन ऐसी साधनाये भी कभी कभी विफल हो जाती है।

इस साधना को गृहस्थ और सन्यासी सभी कर सकते हैं। किसी तरह के खाने पीने का कोई परहेज़ नही है।

ये साधना आपको तब करनी चाहिए जब आप के जीवन में रुकावटें खत्म होने का नाम नही लेती एक से एक समस्या आपके जीवन में आती ही रहती है और धंदे व्यापार में से कोई लाभ नही मिलता।

अगर पूरी तरह कंगाली भी आ गयी हो खाने के लाले पड़ गए हों तो ये साधना आपके जीवन को सम्पन्नता को और अग्रसर करती है। यहाँ अघोरीयों का एक मन्त्र उसके नियम और विधी देने का प्रयास मात्र है अगर आप बिलकुल नए साधक है तो कुछ चीजों का किसी विद्वान जानकार पता लगा लें कि आपके ग्राम देवी, ग्राम देवता,कुलदेवी,कुलदेवता,इष्ट और पित्र किसी तरह से नाराज तो नही हैं, क्या जीवन में कोई भूल या कोई गलती तो नही हुई या किसी का कोई भोग देना तो नही रहता है।

या आपके घर में किसी अनजानी शक्ति जिस का आपको पता न हो वास तो नही। ये अनजान शक्तियां आपका फायदा और नुकसान दोनों तरह का काम कर सकती है।

ये साधना ४१ दिनों की है। खाने पीने का कोई परहेज नहीं है,अपितु जो भी खाओ पीओ पहले अघोरी बाबा को भोग लगाओ ताकि जल्दी सफलता मिले । हां ब्रह्मचर्य व्रत का पालन सख्ती से करें , जिनको स्वप्नदोष की समस्या है उनको पहले शमसान की साधना करनी चाहिए, क्योंकि जलते हुए मसान के सामने खड़े होने से ये दोष धीरे धीरे समाप्त हो जाता है।

प्रथम दिन साधना को शुरू करने से पहले एक बार अपने इष्ट पित्र को भोग दे, फिर हाथ में जल लेकर मनोकामना स्मरण करें और संकल्प लें। सिर पर काला पटका बांधे और कपड़े काले पहनने है।

भोजन जितनी बार भी करो लेकिन पहला ग्रास अघोरी को समर्पित करना होगा। जिस दिन जाप शुरू करना हो उस दिन शमशान मैं या चौराहे पर जाकर आपको एक बोतल शराब एक पताशा पांच लड्डू लौंग का जोड़ा एक इलायची ग्यारह सफेद गुलाब के फूल अघोरी मंसाराम के नाम से दें और वहाँ से थोड़ी सी मिट्टी किसी कागज में डालकर अपने साथ ले लें।

साधना स्थल का चुनाव करने के बाद आपको दक्षिण दिशा छोड़कर किसी भी दिशा में मुँह कर सकते हैं। भोग में देसी या अंग्रेजी शराब देना है। सफेद मिठाई, सफेद फूल,चंदन की अगरबत्तियां लगानी है और गुग्गल की धूनी देनी है । साधना काल में एक सरसों के टेलनक दीया जलता रहे। कंम्बल का आसन लगाएं। इस साधना को आप श्मशान चौराहे खाली मैदान या घर की खाली छत पर कर सकते है,लेकिन भोग आपको श्मशान घाट,किसी चौराहे,किसी पीपल या वट वृक्ष के नीचे ही देना है । जल पात्र अवश्य अपने पास में रखें जाप के बाद वो जल दूसरे दिन सुबह किसी पेड़ में डाल दें।

५-माला रोज़ जाप करें तो बहुत अद्धभुत होगा आपको ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते में परिणाम मिलने लगेंगे,किसी किसी साधक को ऐसा भी हो सकता है अघोरी वीर परीक्षा लें अक्सर ऐसा नहीं होता उस अवस्था में साधक को धैर्य से काम लेना चाहिए। इस साधना को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए।

मन्त्र:-हौं नमो आदेश गुरु को,मनसाराम मरघट बसे खप्पर में पिये मद कस प्याला फिर मेरा कारज सिद्ध करे तो पूजूँ औघड़वीर ना सिद्ध करो तो गौरा महादेव पार्वती की दुहाई,चले मन्त्र औघड़ी वाचा देखूं औघड़वीर मनसाराम तेरे शब्द का तमाशा मेरे लिये चल मेरा कारज करने चल ना चले तो कालभैरव की लाख लाख दुहाई फिरै छू 

अघोर गुरु मंत्र- घोर घोर अघोर का चेला मद मे मस्त रमता मुर्दे के भस्म को चलाता महाकाल को पुजे मसान को पुजे गुरु के चरणों को पूजे गुरुकृपा से सब कारज सिद्ध करे इतनी शक्ति औघड़ के शिष्य को वचन में मीले ना मिले तो ———–गुरुमुख औघड़ अघोरी बाबा का गुरुमंत्र सच्चा चले छू

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