महात्म्य एवं सौभाग्य वृद्धि के विशिष्ट उपाय।

सभी नक्षत्रों में पुष्य नक्षत्र को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। यह शुभ मुहूर्त खरीददारी के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस बार गुरुपुष्य नक्षत्र 25 जनवरी को है। साथ ही इस दिन पौष पूर्णिमा भी है। पुष्‍य नक्षत्र के दिन किए गए हर कार्य का उत्तम फल प्राप्त होता है। 

क्या है गुरु पुष्य योग 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गुरु पुष्य योग के देवता बृहस्पति, एवं स्वामी ग्रह शनि है, इसकी राशि कर्क 03।20 से 16 । 40 अंश तक मान्य है। भारतीय खगोल मे यह 8 वां लघु संज्ञक नक्षत्र है। इसके तीन तारे है। ये तारे एक सीध मे तीर का आकार प्रदिर्शित करते है। इसे तिष्य या देव नक्षत्र भी कहते है। पुष्य का अर्थ पौषक है। 27 नक्षत्रो मे सबसे प्यारा नक्षत्र माना जाता है। यह शुभ  सात्विक पुरुष नक्षत्र है। इसकी जाति क्षत्रिय, योनि छाग, योनि वैर वानर, गण देव, आदि नाड़ी है। यह पूर्व दिशा का स्वामी है।

बृहस्पति / गुरु इसके देवता माने जाते है।  ये सुरो (देवो) के आचार्य है। शिव-शंकर की कृपा से इन्हे ग्रहो मे गुरु का स्थान मिला है। ये इन्द्र के उपदेशक अर्थात सलाहकार है। शिव पुराण अनुसार महर्षि अंगिरस और सरूपा के पुत्र है। इनकी तीन पत्निया तारा, ममता, शुभ है। इनका रंग पीला तथा वस्त्र पीले है।  ये दीर्घायु, वंशज, न्याय प्रदाता है। ये ईश्वर दिशा यानि उत्तर-पूर्व कोण ईशान के स्वामी है। 

पुष्य नक्षत्र विवाह मे सर्वदा वर्जित है।  क्योकि ब्रह्मा जी ने अपनी पुत्री शारदा का विवाह गुरु पुष्य मे करने का निश्चय किया । किन्तु उसके रूप, सौन्दर्य पर स्वंयम मोहित हो गये, इस पशुता के कारण ब्रम्हा जी ने इस योग को शाप देकर विवाह से वर्जित कर दिया। इसलिये गुरु पुष्य मे विवाह नही होते।

गुरु पुष्य योग की विशेषताएं 

इसमे दोनो ग्रह गुरु और शनि का प्रभाव है। इसमे सभी प्रकार की पूजा, प्रार्थना, साधना सफल होती है। यह आध्यात्मिक परिपक्वता, माता का दूध, नकारात्मकता से सकारात्मकता का कारक है। इसमे उत्पन्न जातक कभी-कभी हठी, स्वार्थी, दुराग्राही होता है। इस नक्षत्र में सोना खरीदना शुभ माना जाता है। यदि रविवार या गुरवार को पुष्य नक्षत्र हो, तो क्रय-विक्रय विशेष शुभ माना जाता है। श्री राम के अनुज भरत का जन्म नक्षत्र पुष्य था।

गुरु पुष्य योग में जन्मे जातक का विचार

इस योग में जन्मे जातक मेघावी, मृदुभाषी, आध्यात्मिक, सक्षम, आत्म निर्भर, बौद्धिक गतिविधियो मे प्रवृत्त, बिना शर्त मददगार, वंचितो का समर्थक, स्वार्थियो से सतर्क, सामाजिक कार्यकर्त्ता होता है। 

पुष्य जातक विचार

 देव धर्म को मानने वाला, धनवान, पुत्र युक्त, सुन्दर, शान्त, सुखी होता है। ख़ुशी फैलाने और ऊपर उठाने की भावना इनकी प्रतिभा होती है। अपने और परिवार को राजनीति या सामाजिक कार्य में लगाने के कारण इनका मनमुटाव होता है।

पुष्य का पोषण शिशु को माँ की गोद जैसा है। पुष्य का पोषण पुनर्वसु के विपरीत भौतिक स्तर पर सन्तुष्टि दायक है। पुष्य मे “ब्रम्हवर्चस शक्ति” है, जो दिव्य आशीर्वाद के योग्य बनता है।

पुरुष जातक

जातक सम्मानीय, प्रतिष्ठित, महान, आकर्षक, बुद्धिमान, शक्तिशाली, प्रबल व्यक्तित्व वाला होता है। इनके शरीरिक गठन मे कोई विशेषता नही होती। क्योकि हर व्यक्ति का शारीरिक गठन अलग-अलग होता है।  किन्तु इनके शरीर पर तिल, मस्सा, धाव या दाग़ का निशान स्पष्ट दिखता है। 

जातक अत्यंत नाजुक, आधात करने योग्य, अच्छे-बुरे प्रभाववश अस्थिर, कठोर निर्णय लेने मे असक्षम, आत्म केंद्रित, सद्व्यवहारी, देव धर्म को मानने वाला, धनवान, पुत्र युक्त, शांत होता है।

जातक चरित्रवान, वाह्य दुनिया के प्रभावो को रोकने मे असमर्थ होता है।  सहायता आवश्यक होती है, अन्यथा खाई मे गिरेगा। जातक कर्मठ किन्तु व्यवहारिकता रहित होता है। अस्थिर चित्त होने से भटकने वाला, उपेक्षा करने वालो के साथ विपरीत व्यवहार करने वाला होता है।

पुष्यमी को 15-16 वर्ष की उम्र मे कठिनाइया और रोग होते है।  32 वर्ष तक उथल-पुथल, 33 वर्ष से जीवन स्थिर होता है। जातक का परिवारिक जीवन बचपन से ही कठिनाईओ से भरा होता है। परिवार की आर्थिक व सामाजिक स्थिति कमजोर होती है। दाम्पत्य जीवन मे कारणवश पत्नी और बच्चो से दूर रहना पड़ता है।  यह अपनी पत्नी पर भरोषा कम करता है और उसे आत्म निर्भर होने की सलाह देता रहता है।पुष्य जातक को विवाह ज्योतिषी की सलाह और सुझाव अनुसार करना चाहिये। 

स्त्री जातक विचार

इनके व्यक्तित्व मे उदारता, सम्मान, उत्तमता का पुट रहता है, जिससे इनका व्यक्तित्व प्रभावकारी हो जाता है। स्त्री जातक ठिगनी, गेंहुआ वर्ण, उन्नत मुखड़ा, विकसित देह, मानसिक स्थिरता वाली होती है इस कारण यह मोहक होती है। स्त्री जातक हृदय से सच्चा प्यार करने वाली, सदाचार और निति मे विश्वास करने वाली, सदमार्गी, भेद्यता योग्य, अज्ञानता मे दूसरो द्वारा दुर्पयोग की जाने वाली, बेमिलनसार, शांतिप्रिय, मानवीय व्यवहारी, उदासीन, चीड़-चिडी होती है। इन्हे भी 15-16 की उम्र मे उतार-चढ़ाव आते है और 32 उम्र वर्ष तक अनिश्चितता रहती है।  महत्वपूर्ण शासकीय विभाग मे कार्यरत होती है। ये भी आज्ञाकारी होती है।  बचपन मे कई बाधा आती है, दाम्पत्य जीवन भी बाधा युक्त होता है जिससे अन्य औरतो से विरोधाभास होता है। ये वफादार होती है किन्तु पति द्वारा गलत समझी जाती है।

गुरुपुष्य फलादेश प्रमुख आचार्यो अनुसार 

त्र के लोग सुभग, सुन्दर, शूरवीर, प्रसिद्ध होने वाले, धर्म के क्षेत्र मे अग्रणी, धनी, दयालु होते है।  सच्ची बात कहना और सुनना इनका प्रमुख गुण होता है। ये काम वासना की अधिकता वाले किन्तु अवैध सम्बन्धो से दूर रहने वाले होते है। विविध कलाओ को जानना, प्रशंसा करना, उन्हे परखना, कला रसिक होना इनका अतिरिक्त गुण होता है। ये लोग रूखे न होकर हास-परिहास मे भी कुशल होते है। 

ऋषि पराशर

पुष्य जातक को नौकरो की कमी नही रहती। स्वस्थ शरीर होता है।  हर दृष्टि से पुष्टता पुष्य नक्षत्र की मौलिकता है। ये लोग प्रायः शांत मन वाले होते है। 

वराहमिहिर 

गुरु पुष्य अमृत योग पर विशिष्ट उपाय

1. मोती शंख 

मोती शंख एक बहुत ही दुर्लभ प्रजाति का शंख माना जाता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार यह शंख बहुत ही चमत्कारी होता है। दिखने में बहुत ही सुंदर होता है। इसकी चमक सफेद मोती के समान होती है। यदि गुरु पुष्य योग में मोती शंख को कारखाने में स्थापित किया जाए तो कारखाने में तेजी से आर्थिक उन्नति होती है।

मोती शंख में जल भरकर लक्ष्मी के चित्र के साथ रखा जाए तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है।

इस दिन पंचोपचार पूजन द्वारा मोती शंख को घर में स्थापित कर रोज श्री महालक्ष्मै नम: 11 बार बोलकर 1-1 चावल का दाना शंख में भरते रहें। इस प्रकार 11 दिन तक करें। यह प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है।

यदि व्यापार में घाटा हो रहा है तो एक मोती शंख धन स्थान पर रखने से व्यापार में वृद्धि होती है।

2. दक्षिणावर्ती शंख 

शंख भिन्न-भिन्न आकृति व अनेक प्रकार के होते हैं। शंख संहिता के अनुसार सभी प्रकार के शंखों की स्थापना घरों में की जा सकती है। मुख्य रूप से शंख को तीन भागों में विभाजित किया गया है। वामावर्ती, दक्षिणावर्ती और मध्यावर्ती। वामावर्ती बजने वाले शंख होते हैं इनका मुंह बाईं ओर होता है। दक्षिणामुखी एक विशेष जाति का दुर्लभ अद्भुत चमत्कारी शंख दाहिने तरफ खुलने की वजह से दक्षिणावर्ती शंख कहलाते हैं। इस तरह के शंख आसानी से नहीं मिल पाते हैं।

इसकी विधि इस प्रकार है-

गुरु पुष्य के दिन सुबह नहाकर साफ वस्त्र धारण करें और शुभ मुर्हूत में अपने सामने दक्षिणावर्ती शंख को रखें। शंख पर केसर से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का जप करें। मंत्र जप के लिए स्फटिक की माला का उपयोग करें।

मंत्र

ऊं श्रीं ह्रीं दारिद्रय विनाशिन्ये धनधान्य समृद्धि देहि देहि नम:।।

इस मंत्रोच्चार के साथ-साथ एक-एक चावल इस शंख में डालते रहें। चावल टूटे न हो इस बात का ध्यान रखें। इस तरह दीपावली की रात तक रोज एक माला मंत्र जप करें। पहले दिन का जप समाप्त होने के बाद शंख में चावल रहने दें और दूसरे दिन एक डिब्बी में उन चावलों को डाल दें। इस तरह एक दिन के चावल दूसरे दिन एक डिब्बे में डालकर एकत्रित कर लें। जब प्रयोग समाप्त हो जाए तो चावल व शंख को एक सफेद कपड़े में बांधकर अपने पूजा घर, फैक्ट्री, कारखाने या ऑफिस में स्थापित कर दें। इस प्रयोग से आपके घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होगी।

3. पारद लक्ष्मी 

लक्ष्मी की पारद से बनी मूर्ति खरीदना भी बहुत शुभ माना जाता है। कहा जाता है माता लक्ष्मी सुख और ऐश्वर्य की देवी है। लक्ष्मी उपासना में पारद लक्ष्मी का स्मरण अपार खुशहाली देने वाला है।खास तौर पर यह आर्थिक परेशानियों को दूर करने वाला है। व्यवसाय में बढ़ोत्तरी और नौकरी में तरक्की के लिए पारे से बनी लक्ष्मी प्रतिमा के पूजन का विशेष महत्व है।

इसकी विधि इस प्रकार है-

गुरु पुष्य के दिन पारद लक्ष्मी की प्रतिमा (पारे से बनी मूर्ति) उपासना के दौरान एक विशेष मंत्र का जप करने से हर तरह का आर्थिक संकट दूर होता है। इस योग वाले दिन शाम को इच्छुक व्यक्ति को सबसे पहले स्नान कर खुद को पवित्र बनाना चाहिए। इसके बाद पारद लक्ष्मी की प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए। मां लक्ष्मी को लाल चंदन, अक्षत, लाल वस्त्र और दूध से बने पकवान चढ़ाने चाहिए। इसके बाद माता को 108 लाल रंग के फूल अर्पित करें। हर बार फूल चढ़ाते हुए एक मंत्र बोला जाना चाहिए।

मंत्र है:-

ऊंं श्री विघ्नहराय पारदेश्वरी महालक्ष्यै नम:।

इस तरह सारे फूल चढ़ाने के बाद माता लक्ष्मी की आरती पांच बत्तियों वाले दीप से कर अपने आर्थिक संकट दूर करने की प्रार्थना करनी चाहिए। इस मूर्ति का दिपावली के दिन तक रोज पूजन करना चाहिए। फिर इसे तिजोरी में स्थापित करना चाहिए।

4. एकाक्षी नारियल

यह भी नारियल का एक प्रकार है, लेकिन इसका प्रयोग अधिकांश रूप से तंत्र प्रयोगों में किया जाता है। इसके ऊपर आंख के समान एक चिह्न होता है। इसलिए इसे एकाक्षी (एक आंख वाला) नारियल कहा जाता है। इसे धन स्थान अथवा पर कहीं पर भी रख सकते हैं।

इसे साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। गुरु पुष्य के दिन यदि इसे विधि-विधान से घर में स्थापित कर लिया जाए तो उस व्यक्ति के घर में कभी पैसों की कमी नहीं रहती है।

इसकी विधि इस प्रकार है –

सबसे पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। किसी शुभ मुर्हूत में अपने सामने थाली में चंदन या कुंकुम से अष्ट दल बनाकर उस पर इस नारियल को रख दें और अगरबत्ती व दीपक लगा दें। शुद्ध जल से स्नान कराकर इस नारियल पर पुष्प, चावल, फल, प्रसाद आदि रखें। लाल रेशमी वस्त्र ओढ़ाएं। इसके बाद उस रेशमी वस्त्र को जो कि आधा मीटर लंबा हो बिछाकर उस पर केसर से यह मंत्र लिखें-

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं महालक्ष्मीं स्वरूपाय एकाक्षिनालिकेराय नम: सर्वदिद्धि कुरु कुरु स्वाहा।

इस रेशमी वस्त्र पर नारियल को रख दें और यह मंत्र पढ़ते हुए उस पर 108 गुलाब की पंखु़ि़ड़यां चढ़ाएं यानी हर पखुंड़ी चढ़ाते समय इस मंत्र का उच्चारण करते रहें-

मंत्र- ऊं ऐं ह्रीं श्रीं एकाक्षिनालिकेराय नम:।

इसके बाद गुलाब की पंखुडिय़ां हटाकर उस रेशमी वस्त्र में नारियल को लपेटकर थाली में चावलों की ढेरी पर रख दें और इस मंत्र की 1 माला जपें-

मंत्र

  ऊं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं एकाक्षाय श्रीफलाय भगवते विश्वरूपाय सर्वयोगेश्वराय त्रैलोक्यनाथाय सर्वकार्य प्रदाय नम:।

सुबह उठकर पुन: 21 गुलाब से पूजा करें और उस रेशमी वस्त्र में लिपटे हुए नारियल को पूजा स्थान पर रख दें। इस प्रकार एकाक्षी नारियल को घर में स्थापित करने से धन लाभ होता है।

5. लघु नारियल 

ये नारियल आम नारियल से बहुत छोटे होते है। तंत्र-मंत्र में इसका खास महत्व है। नारियल को श्रीफल भी कहते हैं यानी देवी लक्ष्मी का फल। इसकी विधि-विधान से पूजा कर लाल कपड़े में बांधकर ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहां किसी की नजर इस पर न पड़े। इस उपाय से मां लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं।

इसकी विधि इस प्रकार है

गुरु पुष्य के दिन सुबह स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। किसी भी शुभ मुर्हूत में लघु नारियल का केसर व चंदन से पूजन करें और माता लक्ष्मी व भगवान विष्णु का ध्यान करें। उनसे घर में समृद्धि बनाए रखने के प्रार्थना करें, फिर 108 बार निम्न मंत्र का जप करें-

।। श्रीं।।

इस समाप्ति के बाद लघु नारियल को धन स्थान पर रखें।

6. यदि गुरु पुष्य नक्षत्र पर मोती शंख में जल भरकर लक्ष्मी जी की मूर्ति के पास रखा जाए तो अन्नपूर्णा देवी अत्यंत खुश होती हैं।

7. गुरु पुष्य योग के  समय माँ लक्ष्मी जी के धन प्राप्ति के मंत्र का जप कमलगट्टे की माला के साथ 108 बार करें। आपके लिए धन के द्वार खुल जाएंगे।

8. माँ लक्ष्मी को कमल पुष्प अत्यंत प्रिय है अत:उनकी पंचोपचार पूजा विधि या षोडशोपचार पूजा में कमल पुष्प और सफ़ेद मिठाई अर्पित करें।

9. इस पुष्य नक्षत्र के समय अपामार्ग के पौधे का माथे पर तिलक लगाने से आपकी सम्मोहन शक्ति बढ़ेगी। इससे आपकी बातें दूसरे मानने लगेंगे।

10. इस शुभ मुहूर्त में यदि आप धन संचय करने वाली तिजोरी में अपामार्ग की जड़ रखेंगे तो यह तिजोरी आपके लिए भाग्यशाली और धन खींचने का साधन बन सकती है।

11. यह दिन माला से मंत्र जप का सही दिन माना जाता है, आप किसी मंत्र को जाप द्वारा सिद्ध कर सकते हैं। गुरु पुष्य योग 25 जनवरी प्रातः 08:16 से 26 जनवरी की प्रातः 10:18 मिनिट तक रहेगा।

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